कल शाम मैं इक़बाल भाई से मिला

अजब शक्शियत हैं इक़बाल भाई भी. हिन्दू होते हुए भी मुसलमान सा नाम रखते हैं, मुफ़लिस होते हुए भी दिल बड़ा रखते हैं. कभी लन्दन में फ़ाकामस्ती, कभी कानपूर में जूते घिसाई, कभी हालीवुड की बेवेरली हिल्स के आलिशान बंगले में ऐश, कभी वहीँ के किसी होटल में वेटर की नौकरी, बड़ी दुनिया देखि है इक़बाल भाई ने.

उनसे किसी का दर्द सहा नहीं जाता, तभी तो चौथी मंज़िल से कूदी और साल भर तक प्लास्टर ऑफ़ पैरिस के सांचे में जकड़ी उस अनजान गोरी महिला से रोज़ एक घंटा निकाल कर मिलने जाते हैं. कभी अपना पेट काट कर किसी के लिए दवाई लाते हैं, तो कभी अपमान सहने के बाद भी किसी की दिली-तमन्ना पूरी करते हैं. पैसे से उन्हें कोई लगाव नहीं, झूठ बोलने से कतराते हैं, पर फिर भी गुरु-बाबा बन लोगों को रिझाते हैं!

अजब शख्स हैं इक़बाल भाई भी. मेरे अपने न होते हुए भी बेहद अपने नज़र आते हैं. कल शाम मैं उन्हीं इक़बाल भाई से मिला.



इक़बाल भाई, कुर्रतुलें हैदर की कहानी ‘कलंदर’ के मुख्य किरदार हैं. कभी-कभी किसी किरदार से मिलकर ऐसा ही लगता है न कि सच में किसी शख्स से मिलें हो हम?

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