पैगम्बर

चमकती तीरगी की बेरहमी
जब हद से बढ़ जाती है
चीखती खामोशियों की गर्मी
जब झुलसा देती है तहज़ीब के पनपते बीज
और कुछ कहने और सुनने को
बचता नहीं ख्याल की बंजर ज़मीन पर

तेरी रहमत का भेजा एक मासूम सा कतरा
जन्म लेता है इस वीरान कागज़ पर
और नज़्म कहलाता है
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