सुबह, बारिश और मैं / at nine on a rainy morning

9:00

बारिश होती तो बाहर है पर पता नही नींद को कैसे पता चल जाता है के वो और मीठी हो जाती है। सुबह जब से उठा हूँ, बारिश धूप की तरह छाई हुई है। एक गहरी, ग्रे धूप जो रोजमर्रा की चीजों को खुशनुमा बना देती है, काले चश्मे की तरह।

कुछ तो जादू है बारिश में। दिल में जो चल रहा होता है उसको और गहराई तक खंगाल कर बाहर ले आती है। दिल गमगीन है तो बारिश रुआंसा कर के छोड़ेगी ही। और दिल खुशगवार है तो समझ लीजिये के पूरा दिन गुनगुनाते हुए जाएगा। हर शख्स की dominant traits बारिश में साफ़ उभर के सामने आ जाती हैं। गोया बारिश कोई आईना हो जो सच दिखलाता हो हर किसी के भीतर का!

अभी एक घंटे पहले उठा हूँ और बिल्कुल भी मन् नही है ऑफिस जाने का। माँ ने खिड़की पर परदे डाले, तो मना कर दिया ये कह कर के, खिड़कियों से दिखती ये बरसती बारिश अच्छी लगती है। एक प्याली चाय की, बेसन के दो पकौड़े और श्री राही मासूम रज़ा की शायरी का संकलन हाथों में। अभी तक की सुबह का तो यही फ़साना है।

बाहर बारिश और हाथ में शायरी की किताब, कैसे ये दिल रूमानी न होता? खैर, ये आवारागर्दी ज्यादा देर चलेगी नहीं। अभी बुलावा आ जाएगा ऑफिस से के टाइम पर पहुंचें हुज़ूर, काफी काम है आज। पेरिस वालों को जरूरत है दिल्ली वालों की!

थोडी देर में ये कलम नौकरी कर रही होगी। पर हाँ, याद जरूर रहेगी ये सुबह, जब बारिश ने कान में फुसफुसा कर कहा था, क्यों न थोड़ी देर और लिख लो मुझे तुम…

9:15

16 Comments

16 Responses to "सुबह, बारिश और मैं / at nine on a rainy morning"