आजकल नहाते समय,
गीता की बड़ी याद आती है
पानी के प्रथम स्पर्श से ही
देह तो नश्वर है की गूँज आती है
आत्मा का क्या है,
वो तो अजर है, अमर है
न उसे पानी भिगोता है,
न आग जला पाती है
पर बाथरूम की
महीन झिर्रियों से आती हवा
इस देह को
बेहद सताती है
हे कृष्ण, तुम तो कह गए:
कर्म करो और फल की चिंता न करो
पर इस मौसम में देवी रजाई की सिखाई,
अकर्मण्यता ही ज्यादा भाती है
आजकल नहाते समय,
गीता की बड़ी याद आती है
आत्मा अमर, देह नश्वर,
तो नहा के क्या होगा का पाठ पढ़ाती है
कहत कवि ‘आदि’
नहाना तो सिर्फ है बहाना
मन साफ़ रखने की कला,
अब किसे आती है
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