उठ मेरी जान तुझे लड़ना है अभी -मुंबई के लिए

उठ मेरी जान तुझे लड़ना है अभी
शहर के मक्तलों1 से उभरना है अभी

साँस रोके बैठी है हरेक रहगुज़र
उदास आँखों से बहता एक खामोश डर
संभल के चलना है, नहीं डरना है अभी
उठ मेरी जान तुझे लड़ना है अभी

ये तेरे रहनुमा, ये नुमाईंदे तेरे
कफ़न भेजेंगे खोखले लफ़्ज़ों के
इन्हीं ज़ख्मों को मलहम में बदलना है अभी
उठ मेरी जान तुझे लड़ना है अभी

इस से पहले के फिर से आदत हो जाये
फिर तू अख़बारों के पन्नों में खो जाये
‘बस बहुत हुआ’ का एलान करना है अभी
उठ मेरी जान तुझे लड़ना है अभी

खून सड़कों पर नहीं, रगों में बहे
ख़्वाब बिखरे नहीं, आँखों में रहें
गर बदलती नहीं दुनिया, तो बदलना है अभी
उठ मेरी जान तुझे लड़ना है अभी

(1 मक़तल: place of sacrifice, killing fields)

5 Comments

5 Responses to "उठ मेरी जान तुझे लड़ना है अभी -मुंबई के लिए"