कहानियों की नगरी

बहुत बड़ा शहर है दिल्ली, और जितने लोग, उतनी कहानियां! अपनी रोजाना की ज़िन्दगी में तो हम एक set pattern follow करते हैं, सुबह घर से उठते हैं, काम पर जाते हैं, उन्ही पहले मिले-मिलाये लोगों से मिलते हैं, घर वापस आ जाते हैं. पर अगर थोडा सा दायरा बड़ा कर लें हम अपना, रुक कर रास्तें में अगर देखें आस-पास तो पाएंगे के चेहरों के भीतर कितनी कहानियां छुपी है इस शहर में.

कहानियों के इस शहर से चुन कर कुछ आधे-अधूरे व्यक्ति-चरित्र पेश करने की मेरी ये कोशिश उम्मीद करता हूँ आपको पसंद आयेगी. किरदार बहुत हैं, और मैं कहानी के सूत्रधार की तरह सबसे जुड़ा रहूँगा, और हम सबको बांधे रहेगी ये महानायिका, मेरी, आपकी दिल्ली.

पहली कहानी – नानी

मेरी पहली कहानी एक बूढी नानी की है, जो दिल्ली के सैकड़ों मोहल्लों की हजारों दादी-नानियों की तरह बेनाम है. उन्हें सिर्फ अम्मा के नाम से जाना जाता है, रास्ते में दिखने पर पाँव छू लिए जाते हैं और फिर भुला दिया जाता है. sunday के दिन ऐसी ही एक नानी ने अपने घर से ऊपर वाली मंजिल में रहने वाले दो लड़कों से उनकी छत पर रहने की इजाज़त मांगी!

नानी की भाषा थोड़ी अबूझ है, वो दोनों सिर्फ इतना समझे के समधियाने से कुछ लोग उनके यहाँ रहने आ रहे हैं तो अपनी बेटी के घर रहने वाली वो नानी अपने ही घर में नहीं रह पायेगी. अब जब तक वो लोग बेटी के घर में रहेंगे, नानी छत पर अपनी खाट डाल के रहेगी, वहीँ अपना चूल्हा-चौका करेगी और अपने पंछियों को दाना डालेगी. बस सुबह नहाने-धोने के लिए वो उन दोनों लड़कों से उनका toilet इस्तेमाल करने की इजाज़त मांग रही थी. आपको क्या लगता है, मना कर पाएंगे वो नानी को?

नानी को अपने पंछियों से बड़ा प्यार है. रोह सुबह मूंह-अँधेरे उठ कर, छत पर दाना दाल कर आती है. और उन्ही पंछियों की वजह से छत पर रहना मंजूर है, पर किसी रिश्तेदार के यहाँ जाना नहीं! कहती है, जिस दिन मेरे पति की मौत हुयी थी, उस दिन भी मैं ऊपर पंछियों को दाना दाल कर आई थी और उनसे माफ़ी मांगी थी, “अब तो घर का खर्चा चलाने वाला चला गया, अब सेवा न कर पाऊँ तो माफ़ कर देना!”

ऐसी नानी को भला वो दोनों कैसे मना कर पाते?

4 Comments

4 Responses to "कहानियों की नगरी"