दिल है तो धड़कने का बहाना कोई ढूंढे -शहरयार की याद में

शहरयार चले गए. सोमवार को twitter पर trending topics में देखा था उनका नाम. डर लगा भी था, के कहीं जो मैं सोच रहा हूँ, वही तो नहीं हुआ? पर फ़िर काम की मसरूफ़ियत में बात दिमाग़ से निकल गयी. आज Times Of India में देखा तो ध्यान आया, शहरयार तो सच में ही चले गए!

शहरयार से, या यूँ कहूँ उनके कलाम से मेरा पहला परिचय फिल्म ग़बन की इस ग़ज़ल से हुआ था, “सीने में जलन, आँखों में तूफ़ान सा क्यूँ है, इस शहर में हर शख्स परेशान सा क्यूँ है” मुझे याद है, मैं काफ़ी छोटा था उम्र में और मैंने पापा से कुछ शब्दों के मतलब भी पूछे थे. उस समय दूरदर्शन पर अच्छी फिल्में आती थीं और मैं इन संजीदा फिल्मों का काफ़ी शौक़ीन था. बाद में जाकर पता लगा की इन्हें तो आर्ट फिल्में बोलते हैं और ये किसी तरह का parallel सिनेमा है! खैर, शहरयार की शायरी ने ज्यादा मेरे जेहन में घर किया, फिल्म उमराव जान के गानों की शक्ल में. इस फिल्म की ग़ज़लों ने तो जैसे दिमाग़ में बैठा दिया, शहरयार कोई नौजवान शायर है जो कभी कभी फिल्मों के लिए भी लिखता है. इसके काफी समय बाद तक भी मुझे ये नहीं पता था की वे एक बड़े नामी शायर हैं और उन्हें कई अवार्ड और सम्मान मिल चुके हैं!

कुछ साल पहले, दिल्ली book fair से, वाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित उनकी गजलों के दो संग्रह लेकर आया. काफ़ी समय तक वो शेल्फ पर अनछुए रहे. कारण यह था के थोड़ा-बहुत मैंने जो शहरयार को पढ़ा, वो दर्द भरा ज़्यादा था और प्यार भरा कम! बचपन में आर्ट सिनेमा देखने वाला मैं बड़ा होकर खुद की ज़िन्दगी को वैसा बनने से न रोक पाया. अब जब ज़िन्दगी parallel cinema जैसी हुयी तो शायरी में, literature में, फिल्मों में उस से बचने लगा. mainstream ज़्यादा भाने लगा. इसीलिए, ज़िन्दगी को हक़ीकत का आइना दिखाती शहरयार की शायरी सिर्फ शेल्फ पर ही रह गयी.

पर पिछले कुछ समय से, मेरे हाथ बार-बार उन भूली हुई क़िताबों की तरफ बढ़ने लगे थे. दिल जब भी दुखी या परेशान होता, ये ग़ज़लें एक दोस्त की तरह साथ बैठ कर समझाने लगतीं, सहारा देने लगतीं. जब-जब मैंने अपने facebook page पर उनका लिखा कोई शेर डाला, कई दोस्तों ने उसे पसंद किया. मेरी हालिया ज़िन्दगी में शहरयार की अहमियत बढ़ती जा रही थी. और फ़िर खबर पढ़ी की शहरयार नहीं रहे.

किसी दिन, एक-एक करके वो सारे शायर, लेखक, कलाकार चले जायेंगे जिनकी छाँव में मेरा लड़कपन बीता है. सिर्फ उनका लिखा हुआ, create किया हुआ रह जायेगा मेरे साथ, हम सबके साथ. और जहाँ तक शहरयार के कलाम की बात है, आज भी जो उनकी लिखी पहली ग़ज़ल मैंने सुनी थी, उसका यही एक शेर एक मंत्र की तरह बार बार दोहराता रहता हूँ. मेरे लिए, ये एक philosophy है, फ़लसफ़ा है  ज़िन्दगी का और उनकी शायरी का निचोड़ भी:

“दिल है तो धड़कने का, बहाना कोई ढूंढे
पत्थर की तरह, बेहिसो-बेजान सा क्यूँ है”

(कुंवर अख्लाक मुहम्मद खाँ शहरयार, 16 जून 1936 – 13 फरवरी 2012 )

“seene mein jalan” movie Gaban

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