ये कैसी अंग्रेजी बाबू

ये कैसी अंग्रेजी बाबू
माँ हुयी है मम्मी बाबू
काँटा-छुरी के हेर-फेर में
छुटी हाथ की ममता बाबू 
कुरते से पायजामा बिछड़ा
माथे से तिलक है उजड़ा
जींस-टॉप के फैशन में
बिंदिया हुयी परायी बाबू
ये कैसी अंग्रेजी बाबू…
देख ज़माना कैसा बदला
त्योहारों का रंग-ढंग बदला
valentine day के चक्कर में
बसंत पंचमी भुलाई बाबू
ये कैसी अंग्रेजी बाबू…
खेत से नाता टूट गया है
गाँव पीछे छूट गया है
इंडिया के संग भारत भी है
पर देता नहीं दिखाई बाबू
ये कैसी अंग्रेजी बाबू…
माना अंग्रेजी बेहद जरूरी
दुनिया से मिटाती दूरी
पर अंग्रेजियत के नशे में
भारतीयता क्यूँ भुलाई बाबू
ये कैसी अंग्रेजी बाबू…
disclaimer: more than a comment on the so-called westernization of the Indian society, it is a personal statement on loss of the traditions that make us Indians what we are. and the irony is, i’m writing this in English 🙂
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