रिश्ता

एक वक़्त था, जब पेंसिल रंग छोड़ती थी कागज़ पर
प्लास्टिक के बटन, आवाज़ तो करते हैं
पर रिश्तों की वो चुभन कहाँ

उँगलियाँ चलती हैं की-बोर्ड पर
नज़्म लेती जाती है रूप अपना
पर कुछ फ़ासला सा लगता है दरम्यान दोनों के

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