पतंग

बच्चों की सी ज़िद थी उसकी
“मुझे पतंग उड़ानी है”

और वो भी रात में!

पूछा, तो बोला के

“रात में पेंचे नहीं लगते न”

अब कौन समझाए उसको

के इस विदेशी शहर में

चरखी-मांझा मिलना कितना मुश्किल है

और नामुमकिन है रात में चमकने वाली पतंग लाना 

पर दिल से बड़ा कोई बच्चा नहीं

ज़िद थी, माननी पड़ी

यादों की डोरी ली है लम्बी सी

(क़रीब आठ बरस लम्बी)

और चाँद बांध दिया है उसके साथ

तुम्हारी छत तक आएगा, देख लेना

उचक के लिख देना नाम उस पर अपना

और लहरा देना फिर से हवा में

तुम्हारे हाथ जो छूकर आये चाँद

तो दिल को सुकून रहेगा.
-adee, sometime during the night of 05.07.15.

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