जब भी अपने दिल के अंदर, मैंने झाँक के देखा है
बाक़ी सारे जग को खुद से, काफ़ी बेहतर देखा है
कुछ लोगों की नज़रों में, वो पत्थर का टुकड़ा है
मैंने जब भी चाँद को देखा, अपना दिलबर देखा है
एक अजीब सा रिश्ता है, मुझ में और उस काफ़िर में
मैंने अपनी रूह से उसकी, रूह को छूकर देखा है
उसकी आँखें पढ़ लेती हैं, बोली मेरी आँखों की
इस महफ़िल में बिन बोले ही, सब कुछ कहकर देखा है
एक ही रात मिली थी उनको, दिल से दिल की कहने को
उसके बाद मिले वो जब भी, चुप-सा अक्सर देखा है
कल शब हमने ज़ख्म कुरेदे, वो फिर याद आया था
और सुबह इस कागज़ को, लफ़्ज़ों से तर देखा है
सारी दुनिया उसको मेरा, सिर्फ़ महबूब समझती है
मैंने उसके क़दमों में, अपना ईश्वर देखा है
-आदी, २४/०८/२०१७