बस यही मेरी सज़ा, मेरा नसीब भी है

बस यही मेरी सज़ा, मेरा नसीब भी है
मेरा साया ही मेरा रकीब भी है
मुझे न समझाइये इबादत के मानी
वो ही दुआ मेरी, वो ही सलीब भी है
कुछ ऐसा रिश्ता रहा दरम्यान तेरे-मेरे
तू ही दूर सब से, तू ही करीब भी है
अजीब शख्स है, जो आईने से झांकता है
पूरा वहशी सही, थोड़ा अदीब भी है
हरेक लिहाज से तू बेहतर सही मुझसे
बिना मेरे, तू थोड़ा ग़रीब भी है

3 Comments

3 Responses to "बस यही मेरी सज़ा, मेरा नसीब भी है"